RKG Astrology Jyotish Ratna Numerology Vastu Gems Consultation Centre in
Bareilly UP India. For Cure & Counselling of All Types of Male & Female
Problems, Please Call / SMS/ WhatsApp on Phone- 7906331183
जन्म कुण्डली हमारे जन्म समय का नक्शा
है, जन्म के समय किस राशि में कौन सा ग्रह कितने अंश में है, इसमें अंकित किया जाता है, प्रत्तेक
ग्रह हमारे जन्म से लगातार
अपनी निश्चित गति से चल रहा है, हमारे जीवन में
घटने वाली प्रत्येक शुभ और
अशुभ घटना इन ग्रहों की गति का ही परिणाम हैं, हम ज्योतिष शास्त्र के द्वारा किसी भी
व्यक्ति के जीवन में घटने वाली किसी भी घटना, समय, घटनास्थल
की जानकारी पहले से कर सकते हैं, बस देखने वाली सही आखें चाहिये, ज्योतिष
के अनुसार अशुभ प्रभाव को रत्न उपचार, मंत्र जाप व पूजन अनुष्ठान एवं उचित दान के द्वारा कम किया जा सकता है, निम्न लिखित समस्याओं के ज्योतिष निवारण के लिए तुरंत संपर्क करें, फ़ोन - 7906331183
गृह कलह (Family
Problems)
विवाह बाधा (Marriage
Obstacle)
प्रेम बाधा (Love
Barrier Tribulation)
दाम्पत्य जीवन (Marriage Life)
सौतन (Husband’s Second Wife)
वशीकरण (Mesmerism Solution)
संतान का ना
होना (Child Birth)
आजीविका निवारण (Livelihood)
ब्यापार हानि (Business
Losses )
नशाखोरी निवारण (Drug Addiction)
मानसिक कलेश (Mental
Problem)
शारीरिक समस्या
(Body Problem)
कालसर्प योग दोष
और इसके निदान
मूल नक्षत्र एवं शांति के उपाय
शिक्षा बाधा (Education Problems)
स्वास्थ्य बाधा (Health
Problems)
प्रमोशन बाधा (Promotion
Problems)
शत्रु बाधा (Enemy Problems)
भाग्य बाधा (Luck Problems)
यश बाधा (Name & Fame
Problems)
ग्रह बाधा (Planetary Problems)
सगाई मुहूर्त (Engagement
Ceremony)
नामकरण मुहूर्त (Naming
Ceremony)
मुंडन संस्कार (Tonsure
Ceremony)
नूतन गृह प्रवेश
(New Log Home)
व्यापार प्रारंभ
(Business Start)
वाहन खरीदी (Vehicle
Purchase)
मशीनरी खरीदी (Machinery
Bought)
सम्पति खरीदी (Property
Purchase)
यात्रा मुहूर्त
(Travel Auspicious)
गर्भाधान
मुहूर्त (Pregnancy Time)
दूसरे विवाह का योग (Second Marriage)
जीविकोपार्जन बाधा (Livelihood
Barrier)
विवाह (Marriage
Life) जीवन की
समस्याओं के कारण
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह जनित रोगों का सामान्य विचार एवं ग्रहो द्वारा रोग विवरण के लिए तुरंत संपर्क करें, फ़ोन - 7906331183
ग्रह जनित रोगों का सामान्य विचार एवं
ग्रहो द्वारा रोग विवरण एवं रोग मुक्ति का ज्योतिषीय गणना से सम्भावित समय जानने के लिए तुरंत
संपर्क करें, फ़ोन - 7906331183
रोगों में शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के रोग आते हैं, इसके अतिरिक्त दुर्घटना इत्यादि का सम्बन्ध भी रोग एवं पीड़ा से होता है, रोगादि एवं शारीरिक पीड़ा का प्रारम्भ जन्म से ही हो जाता है, सामान्य रुप से कुंडली में ग्रहों की स्थितियों से रोगों के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं ,
रोगों में शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के रोग आते हैं, इसके अतिरिक्त दुर्घटना इत्यादि का सम्बन्ध भी रोग एवं पीड़ा से होता है, रोगादि एवं शारीरिक पीड़ा का प्रारम्भ जन्म से ही हो जाता है, सामान्य रुप से कुंडली में ग्रहों की स्थितियों से रोगों के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं ,
1.
लग्न एवं लग्नेश का अशुभ स्थिति में
होना
2. चंद्रमा का क्षीण अथवा निर्बल होना अथवा चन्द्रलग्न में पाप ग्रहों का उपस्थित होना
3. लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव होना
4. जन्मपत्रिका में शनि, मंगल आदि पाप ग्रहों का गुरु, शुक्र आदि शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान होना
5. अष्टमेश का लग्न में होना अथवा लग्नेश का अष्टम भाव में उपस्थित होना
6. लग्नेश की अपेक्षा षष्ठेश का अधिक बली होना
2. चंद्रमा का क्षीण अथवा निर्बल होना अथवा चन्द्रलग्न में पाप ग्रहों का उपस्थित होना
3. लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव होना
4. जन्मपत्रिका में शनि, मंगल आदि पाप ग्रहों का गुरु, शुक्र आदि शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान होना
5. अष्टमेश का लग्न में होना अथवा लग्नेश का अष्टम भाव में उपस्थित होना
6. लग्नेश की अपेक्षा षष्ठेश का अधिक बली होना
2.
उक्त सभी योगों के अतिरिक्त यदि किसी
जातक की जन्मपत्रिका में अरिष्ट योग बनता हो, तो भी जन्म के पश्चात उसे अनेक कष्टों
एवं रोगादि का सामना करना पड़ता
है
कौन सा ग्रह किस रोग का कारक-
1. सूर्य- पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी इत्यादि
2. चन्द्रमा- ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि
3. मंगल- गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि
4. बुध- छाती से सम्बन्धित रोग, नसों से सम्बन्धित रोग, नाक से सम्बन्धित रोग, ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, इत्यादि
5. गुरु- लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि
6. शुक्र- दृष्टि सम्बन्धित रोग, जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले के रोग, नपुंसकता, अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित रोग, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, पीलिया रोग इत्यादि
7. शनि- शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार इत्यादि
8. राहु- मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, किसी प्रकार का रियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर इत्यादि
9. केतु- वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि
कब होगी रोग से मुक्ति-
किसी भी रोग से मुक्ति रोगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा की समाप्ति के पश्चात ही प्राप्त होती है, इसके अतिरिक्त यदि कुंडली में लग्नेश की दशा अर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, योगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा-प्रत्यर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, तो रोग से छुटकारा प्राप्त होने की स्थिति बनती हैं, शनि यदि रोग का कारक बनता हो, तो इतनी आसानी से मुक्ति नही मिलती है, क्योंकि शनि किसी भी रोग से जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है और राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक उस रोग की जांच नही हो पाती है, डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को बीमारी क्या है और ऐसे में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है
कौन सा ग्रह किस रोग का कारक-
1. सूर्य- पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी इत्यादि
2. चन्द्रमा- ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि
3. मंगल- गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि
4. बुध- छाती से सम्बन्धित रोग, नसों से सम्बन्धित रोग, नाक से सम्बन्धित रोग, ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, इत्यादि
5. गुरु- लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि
6. शुक्र- दृष्टि सम्बन्धित रोग, जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले के रोग, नपुंसकता, अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित रोग, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, पीलिया रोग इत्यादि
7. शनि- शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार इत्यादि
8. राहु- मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, किसी प्रकार का रियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर इत्यादि
9. केतु- वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि
कब होगी रोग से मुक्ति-
किसी भी रोग से मुक्ति रोगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा की समाप्ति के पश्चात ही प्राप्त होती है, इसके अतिरिक्त यदि कुंडली में लग्नेश की दशा अर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, योगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा-प्रत्यर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, तो रोग से छुटकारा प्राप्त होने की स्थिति बनती हैं, शनि यदि रोग का कारक बनता हो, तो इतनी आसानी से मुक्ति नही मिलती है, क्योंकि शनि किसी भी रोग से जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है और राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक उस रोग की जांच नही हो पाती है, डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को बीमारी क्या है और ऐसे में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह जनित
रोगों का सामान्य विचार एवं ग्रहो द्वारा रोग विवरण के लिए व अन्य किसी समस्या के ज्योतिश निवारण व् समाधान
हेतु तुरंत संपर्क करें, फ़ोन – 7906331183
RKG Astrology Jyotish Ratna Numerology Vastu Gems Consultation Centre in
Bareilly UP India. For Cure & Counselling of All Types of Male & Female
Problems, Please Call / SMS/ WhatsApp on Phone- 7906331183